Maharashtra Vidhansabha Election: योगी आदित्यनाथ के नारे ‘बटेंगे तो कटेंगे’ और शरद पवार की राजनीति

Maharashtra Vidhansabha Election
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Maharashtra Vidhansabha Election : महाराष्ट्र चुनाव 2024 ने राज्य की राजनीति को पूरी तरह बदलकर रख दिया। इसे शरद पवार के राजनीतिक जीवन का सबसे कठिन मोड़ कहा जा सकता है। इस चुनाव में, पवार न सिर्फ अपनी पार्टी को बड़े नुकसान से बचाने में नाकाम रहे बल्कि खुद के नेतृत्व पर भी सवाल उठ खड़े हुए।

योगी आदित्यनाथ के नारे “बटेंगे तो कटेंगे” ने इस चुनाव में अहम भूमिका निभाई। इस नारे ने जहां महायुति को फायदा पहुंचाया, वहीं महा विकास अघाड़ी को बुरी तरह नुकसान उठाना पड़ा।

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शरद पवार का कमजोर प्रदर्शन

शरद पवार, जिन्हें महाराष्ट्र की राजनीति का “चाणक्य” कहा जाता है, इस चुनाव में अपनी छवि बचाने में विफल रहे।

  1. कमजोर पकड़: शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस सिर्फ 10 सीटों पर सिमट गई।
  2. पुराने फॉर्म का अभाव: पहले की तरह जनता पर पकड़ और रणनीतिक सूझबूझ नज़र नहीं आई।
  3. इमोशनल कार्ड: पवार ने इसे अपना आखिरी चुनाव बताते हुए सहानुभूति बटोरने की कोशिश की, लेकिन यह रणनीति भी नाकाम रही।

“बटेंगे तो कटेंगे” नारे का असर

योगी आदित्यनाथ ने महायुति के लिए चुनाव प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  • प्रभावशाली स्ट्राइक रेट: योगी आदित्यनाथ ने जिन 23 उम्मीदवारों का प्रचार किया, उनमें से 20 उम्मीदवार जीत गए। यह 87% स्ट्राइक रेट दर्शाता है।
  • धार्मिक ध्रुवीकरण: “बटेंगे तो कटेंगे” का नारा हिंदू वोट बैंक को एकजुट करने में सफल रहा।
  • महा विकास अघाड़ी पर चोट: इस नारे ने महा विकास अघाड़ी के गठबंधन को कमजोर कर दिया।

शरद पवार ने क्यों ठहराया योगी आदित्यनाथ को जिम्मेदार?

शरद पवार ने चुनावी हार के बाद अपनी असफलता का ठीकरा योगी आदित्यनाथ के धार्मिक ध्रुवीकरण पर फोड़ा।

  1. धार्मिक ध्रुवीकरण का मुद्दा: उन्होंने कहा कि “धर्म को राजनीति से जोड़ने” ने माहौल बदल दिया।
  2. महा विकास अघाड़ी की रणनीतिक चूक: पवार यह समझने में नाकाम रहे कि धार्मिक मुद्दे इस बार चुनाव में अधिक प्रभावी होंगे।

महा विकास अघाड़ी की कमजोरियां

महा विकास अघाड़ी (एमवीए) इस चुनाव में कई मोर्चों पर कमजोर नजर आई।

  • सीटों का बंटवारा: महा विकास अघाड़ी के दोनों मुख्य घटक, शिवसेना (उद्धव गुट) और कांग्रेस, लगभग बराबर सीटें जीतने में सफल रहे, लेकिन कुल प्रदर्शन निराशाजनक रहा।
  • कमजोर नेतृत्व: एमवीए के नेताओं में तालमेल की कमी साफ दिखी।
  • अजीत पवार का प्रभाव: अजीत पवार का एनडीए के साथ जाना एमवीए को भारी पड़ा।

शरद पवार के सामने चुनौतियां

चुनाव परिणामों ने शरद पवार को एक कठिन स्थिति में ला खड़ा किया।

  1. 10 विधायकों को संभालना: राष्ट्रवादी कांग्रेस के सिर्फ 10 विधायक बचे हैं। इनकी टूट की संभावना अधिक है।
  2. भतीजे अजीत पवार का दबदबा: अजीत पवार के बढ़ते कद ने शरद पवार के नेतृत्व को कमजोर कर दिया है।
  3. राजनीतिक भविष्य: हार के बावजूद पवार ने रिटायरमेंट की संभावना से इनकार किया है। अब उनके सामने अपनी पार्टी को फिर से खड़ा करने की चुनौती है।

योगी आदित्यनाथ का चुनावी करिश्मा

योगी आदित्यनाथ ने इस चुनाव में महायुति के प्रचार को नई ऊर्जा दी।

  1. धार्मिक नेतृत्व: योगी ने हिंदू वोटरों को अपने संदेश से आकर्षित किया।
  2. सामाजिक संदेश: “बटेंगे तो कटेंगे” जैसे नारे ने समाज के विभिन्न वर्गों में भाजपा के समर्थन को मजबूत किया।
  3. लोकप्रियता का फायदा: उनकी छवि ने महाराष्ट्र में भाजपा के उम्मीदवारों को बढ़त दिलाई।

भविष्य की राजनीति पर असर

महाराष्ट्र चुनाव 2024 के नतीजे राज्य की राजनीति पर लंबे समय तक असर डालेंगे।

  1. महायुति की मजबूत पकड़: महायुति अब राज्य की सबसे मजबूत राजनीतिक ताकत बनकर उभरी है।
  2. एमवीए के लिए संकट: एमवीए को पुनर्गठन और नेतृत्व में बदलाव की आवश्यकता है।
  3. धार्मिक राजनीति का उदय: यह चुनाव धार्मिक ध्रुवीकरण की बढ़ती भूमिका को भी दर्शाता है।

निष्कर्ष

महाराष्ट्र चुनाव 2024 शरद पवार के राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा झटका साबित हुआ। योगी आदित्यनाथ का नारा “बटेंगे तो कटेंगे” महायुति के लिए गेम-चेंजर साबित हुआ। पवार को अब अपनी पार्टी और गठबंधन को फिर से खड़ा करने के लिए नई रणनीतियों की जरूरत है। यह चुनाव भारतीय राजनीति में धार्मिक और सामाजिक मुद्दों की बढ़ती भूमिका को भी रेखांकित करता है।